दीवानगी

क्या जरूरत है किसी और हमसफ़र की उसे, खुद जिंदगी जिसकी मेहबुबा हो,
ना रास्तों की ना मंझिलों की फ़िक्र होगी, जब दिल में कुछ कर दिखाने की चाहत हो।

चट्टानों से टकराने का क्या होगा डर उसे,  जो तूफानों को समझता साहिल हो,
हर राह बनेगी आसान उसकी, राहगिरी में मिलती जिसे राहत हो।

खुद के ही सपनों से हो परहेज़ जिसे, वो क्या जाने हौसलों को,
जिंदगी को है जाना तूने, अगर तेरे सपने ही तेरी ताकत हो।

नादाँ इस दुनिया के लोग अक्सर नजरअंदाज करते है दीवानों को,
पर इतिहास के पन्नों पे अमर है वही दिल में जिसके दीवानगी हो।

- स्वप्नील संजयकुमार कोटेचा

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