दिल कहता है...

दिल कहता है,
तेरी लहराती ज़ुल्फ़ों को हम यूँही संवारते रहे,
तेरी मासूमसी बातों में हर लम्हा मशरूफ रहे,
तेरी खिलखिलाती मुस्कानसे बेरंग शामोंको सजाते रहे,
तेरी झीलसि आँखोंमे यूँही बेख़ौफ़ डूबते रहे...
दिल कहता है,
तेरी नाज़ुकसी उंगलियाँ मेरे बालोंको यूँही सहलाती रहे,
तेरी गुनगुनाती धड़कनोंको ख़ामोशीसे हम सुनते रहे,
तेरी भीनी भीनीसी ख़ुशबूसे हम यूँही महकते रहें,
आफ़रीन तेरे इस चेहरेको हम सहर तक ताकते रहे...
दिल कहता है,
तेरे संग यूँही बेग़ानीसी राहोंपे चलते रहे,
तू न हो तो दरबदर् सूखें पत्तोंसे भटकतें रहें,
तेरे ख़ूबसूरती के जाम हम यूँही मद्होशीमेँ पीते रहे,
तेरी क़ातिलाना अदाओं पर यूँही रातभर नझमेँ लिखतें रहें...
दिल कहता हैं,
यूँ अचानक मिलना तेरा शायद ख़ुदाकी कोई रहमत है,
यूँ तन्हाईयों में साथ होना जैसे कोई अनोखी बरकत है,
बस यूँही चुराते रहें तुझसे ही हम तुझको,
क्यों की बस आहटही काफ़ी है तेरी इस दिलके धड़कने को...
बेज़ुबाँ ये दिल आजकल बहोत कुछ कहता है,
तेरी मुलाक़ात के लिए हर पल बेचैनसा रहता है,
बस कुछ लम्हेंही तो साथ बिताये है तेरे,
और लगता है के तुमसे मिले हुए हमें अरसा हो गया है...
 
- स्वप्निल संजयकुमार कोटेचा

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