तुम और बारिश... - स्वप्निल संजयकुमार कोटेचा

तुम और बारिश...
- स्वप्निल संजयकुमार कोटेचा

क्या नाता हैं तुम्हारा और बारिश का?
क्यों बरसती हो बारिश की तरह... बिन बताये...
जब जी चाहे आती हो अचानक और भिगोके चली जाती हो...

क्यों है उतनी समानता तुममें और बारिश में?
तुम भी एकदम साफ, झीनी-झीनीसी, बारिश की तरह...

तुम क़यामत, ख़ुदा की रहमत... बिल्कुल बारिश की तरह...
तुम आती हो तो हवाओं में कोई रुंझुं सी बजती है,
दुनियाँ जैसे गुनगुना उठती है...

ये कैसा राज है तुम्हारा और बारिश का?
तेरी आँखों में भी गहराईयां है... हूबहू बारिश की तरह...

तुम्हारी चाहत, तुम्हारा प्यार, सब बारिश की तरह... मुझे तरसानेवाला...
दूधियाँ कोहरेसा दिलोदिमाग पे छानेवाला,
चुल्लू में भर लूँ तो हथेलियोंसे छूट जानेवाला...

क्या तुम बारिश हो?
तुम्हारा आना-जाना, हसना, रूठना... सब गैर मुक़र्रर...
बारिश की तरह...

तेरे नखरे, तेरी अदाएं सब बारिश की तरह... हरबार नयी...
जितनी झिल्लड़ उतनी ही रंगों से सजी हुई,
कभी तीख़ी नुकीली सी बूंदे, कभी चमकती झलकती हुई...

हां तुम बारिश ही हो शायद...
तूफ़ानी रातों में हलकेसे रिमझिमसे बरसती हो,
प्यार बरसाते बरसाते कभी अचानक गरजती हो...
कभी कभी प्यार की झड़ियाँ लगा देती हो
और कभी रूठती हो ऐसे की वापसी में सदियाँ लगा देती हो...

क्या सच में तुम बारिश हो?
अगर नहीं तो,
क्यों मैं तुझमें भीगकर माटीसा सौंधा सौंधा महकता हूँ,
क्यों तेरी एक बूँद के लिए चातक की तरह तड़पता हूँ,
क्यों इक पल की मुलाक़ात में तुझे गाघर सा भर लेता हूँ,
क्यों तेरी जरासी आहट पे मैं मोर जैसा झूम उठता हूँ।

जब भी आती हो तुम,
ज़िन्दगी की वीरानियों में बहार आ जाती है,
दिल में खुशियों की इक नदी उफ़ान पे आ जाती है,
तेरी बरसात में हरबार रोमरोम भीग जाता है,
तेरी मख़मली फ़ुहारों में मेरा इश्क़ बहक जाता है...

और फिर कभी कभी तो तुम और बारिश दोनों आते हो साथ साथ,
बरसते रहते हो लाज शर्म के परदों को चीर के, बेपरवाह से...
टूट पड़ते हो मुझपे, सारा प्यार जैसे इक ही दिन में बरसाना हो...
और... फिर चले जाते हो सब तोड़ताड़ के, लूट मारके...
बिख़र जरूर जाता हूँ मैं,
हाँ पर तुमसे प्यार करना नही छोड़ पाता,
फिर आँखियाँ लगाके बैठता हूँ आसमाँ पे,
इसी उम्मीद में की तुम,

दिल की सुलगती रेत पे अंबर केे पानीसा बरसोगी,
तूफ़ानी रातों में आके मेरे सीने से लिपटोगी,
क़ैद हो जाओगी मेरे प्यार की सीपियों में, मोतियोंसा चमकोगी,
और ज़िन्दगी के हर पन्ने पे ओंस की बूँदों सा ठहरोगी...

और फिर तुम छिप जाती हो कहीं... बारिश की तरह...
मैं ढूँढता रहता है, तड़पता रहता हूँ तुम्हारी आस में,
हारता रहता हूँ,
तुम्हारी और बारिश इस लुक्काछूपी में हरबार,
बस बरसती रहती है मेरी बेपनाह मोहब्बत तुम्हारे लिए,

कभी मेरी ज़ुबाँ से, कभी मेरी नज़्मों से,
और लोगों की नजरें चुरा के कभी मेरी पलकोंसे।

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