इंतज़ार...

पुराने खंड़रसी है इस दिल की हालत,
टुटा-फुटासा कबसे ख़ुद को संभाले बैठा है,
कवाड़ोंपे सालोंसे ताले लगे पड़े है,
खुशियों को तो हम कबके भूल गए है,
दरारें बढ़ रही है, दीवारें ढल रही है,
बाकी अब कुछ आख़री साँसेही बची है,
थाम लो तुम तो शायद ये दिल संवर जाये,
सदियोंसे दिल को तेरी एक दस्तक का इंतज़ार है,
मेरी हर तमन्ना को पूरी होने का इंतज़ार है,
मेरी हर दुवा को क़बूल होने का इंतज़ार है,
मेरी तन्हाई को अब तेेरी सोहबत का इंतज़ार है,
मेरी हर धड़कन को तेरी मोहब्बत का इंतज़ार है...
इंतज़ार-ए-दिलबर में ज़िन्दगी कतरा-कतरा गुज़र रही है,
दर्द-ए-तन्हाई की बेहिस दिल को आदतसी हो रही है,
ख़ूब फख्र, ख़ूब इख़्तियार था हमें वफ़ाओं पे अपनी,
पर दिल लगाने की ज़ुर्रत पर बेवफ़ाई ईनाम मिल रही है,
शीशे के ये अरमाँ सारे, टूटतेही जा रहे है,
ख़ुदा संग दुनियावाले भी पत्थर के बनतेही जा रहे है,
संभाल लो तुम तो शायद मेरी दुनियां संवर जाये,
चोटों में लिपटे इस दिल को प्यार के मरहम का इंतजार है,
फ़ासलों को थोड़ी नज़दीकियों का इंतज़ार है,
दिल की सुलगहती रेत को तेरे बरसने का इंतज़ार है,
अरसों से सिले इन लबों को तेरे छुने का इंतजार है,
मरने से पहले इकबार तेरे बाँहों में भरने का इंतज़ार है...
इंतजार में तेरी हम अंखियाँ लगायें बैठे है,
तेरे आने के रस्ते पे दिल को बिछाये बैठे है,
हर गली, हर चौराहे को धड़कन से सजाये रखा है,
तेरे आने के इंतजार में हमने रात को थमा रखा है,
तेरी उल्फ़त पे यकीं, तुझसेही वफ़ा की उम्मीद है,
तू आएगी अगर कब्र पे तो मौत भी हमें मंजूर है,
मिल जाओ तुम तो शायद ये ज़िन्दगी संवर जाये,
जीने के लिए सिर्फ तेरी इक 'हाँ' का इंतजार है,
दिल की वीरानियों को अब बहार का इंतज़ार है,
रातों के जागे है हम, हमें सहर का इंतज़ार है,
इन्तेहाँ हो गयी इंतज़ार की, फिर भी तेरे आने का इंतज़ार है,
रोक रखी है साँसे की इस इंतज़ार के ख़त्म होने का इंतज़ार है...
- स्वप्निल संजयकुमार कोटेचा

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