Safar

हलक पे आके अल्फ़ाज़ थम गए है,
पलकों में आके अश्क जम गए है,
दरवाज़े पे आके दस्तक रुक सी गई है,
दीवार पे टंगी घड़ी भी आज थक सी गई है,
मंजिलें तो है नज़र में मगर राहें गुमशुदा है,
पाके भी सबकुछ दिल ये गमजदा है,
ग़म नहीं है अब सितम-ए-ज़िन्दगी का कोई,
ख़ुशी की भी कोई अब उम्मीद ही नहीं है,
रुक सा गया है सबकुछ और
कमबख्त ये सांसें है की बस चलती ही जा रहीं है।

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