एक तनहा बादल हूँ मैं...

एक तनहा बादल हूँ मैं...
थोड़ासा खोया खोया सा... गुमशुदा राहोंमें खुद की,
न जाने क्या ढूंढता हुआ... थोड़ासा मग़रूर... थोड़ासा  मशहूर...
थोड़ा मज़बूर... थोड़ासा  मनचला सा...

एक तनहा बादल हूँ मैं...  
मंझीलों की तलाश में, सीने में ख़राश हैं...
जीतनी हैं दुनिया सारी, बाजुओं पे विश्वास हैं...

एक तनहा बादल हूँ मैं...
हसरतों में सुलगती एक आग हैं... दिल में न बुझती एक प्यास हैं...
पिघलता हूँ रोज इस जलती धुप में... पर ज़न्नत की ख्वाहिश में सब मंजूर हैं...

एक तनहा बादल हूँ मैं... 
परबतों से टकराता हूँ, कभी फुट फुट के रोता हूँ,
झूमता हूँ,  बरसता हूँ, ग़ुर्राऐ  बिजली  तो डर के छिपता हूँ...

एक तनहा बादल हूँ मैं...
जीता हूँ अपनी शर्तों पे… अपनी जिद थोड़ा गुमाँ हैं…
बहोत धूल उड़ाई हैं इन हवाओंने मुझपर, तुफाँनो से लड़ने को भी अब हम तैयार हैं…

एक तनहा बादल हूँ मैं...
परिँदोसा बस उड़ताही रहता हूँ, दिन हो या रैन बस चलताही रहता हूँ,
न थकान हैं बस उड़ान है, दिल में हैं गम भरा पर होठोंपे मुस्कान हैं…

एक तनहा बादल हूँ मैं... 
ना सरहदों की पहचान हैं, ना मजहबोंसे प्यार हैं,
गुमराह करेगा भी तो कौन मुझे, गीत भी मेरे हैं, धून भी मेरी हैं...

एक तनहा बादल हूँ मैं...
थोडासा खोया खोया सा... गुमशुदा राहोंमें खुद की,
न जाने क्या ढूंढता हुआ... थोड़ासा बहकासा...  थोड़ासा  मेहकासा...
थोड़ासा  दिलहारा... थोड़ा बंजरासा...
- स्वप्निल संजयकुमार कोटेचा

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